अगर आंख न होती तो

 जो आँख ही न होती: एक कल्पनाजो आँख ही न होती: एक कल्पना

आज हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं जहाँ आँखें होती ही नहीं! सोचिए, अगर हमारी ज़िंदगी से रोशनी और रंग हमेशा के लिए गायब हो जाएँ, तो कैसा होगा?



कैसी होगी दुनिया?

 * अंधेरे का राज: हर जगह सिर्फ़ अँधेरा होता. सुबह और शाम का कोई फ़र्क नहीं रहता. सूरज की किरणें, चाँद की चाँदनी और तारों की टिमटिमाहट का कोई मतलब नहीं होता.



 * पहचान का तरीक़ा: हम एक-दूसरे को देख नहीं पाते. लोग एक-दूसरे को छूकर, आवाज़ सुनकर या गंध से पहचानते. नाम और आवाज़ का महत्व बहुत बढ़ जाता.

 * कला और सौंदर्य: पेंटिंग, मूर्तिकला, फ़ोटोग्राफ़ी जैसी चीज़ें नहीं होतीं. सौंदर्य को महसूस करने का तरीक़ा ही बदल जाता. शायद हम संगीत, कविता या स्पर्श से चीज़ों की ख़ूबसूरती को समझते.

 * सीखने का तरीका: किताबें पढ़ने के बजाय, हमें सब कुछ सुनकर या छूकर सीखना पड़ता. स्कूलों में शायद ऑडियो क्लासेस और ब्रेल लिपि का बोलबाला होता.

 * आवागमन: सड़कों पर गाड़ियाँ नहीं होतीं, क्योंकि कोई रास्ता देख ही नहीं पाता. शायद लोग एक-दूसरे से जुड़ने के लिए आवाज़ों और स्पर्श का इस्तेमाल करते. सुरक्षा के लिए नए तरीक़े ढूँढे जाते.

क्या चीज़ें बेहतर होतीं?

 * भेदभाव कम होता: रंग-रूप के आधार पर होने वाला भेदभाव ख़त्म हो जाता. लोग एक-दूसरे को उनके अंदरूनी गुणों से पहचानते.

 * दूसरी इंद्रियों का विकास: हमारी सुनने, सूंघने, छूने और स्वाद चखने की शक्ति बहुत ज़्यादा बढ़ जाती. हम दुनिया को नए तरीक़ों से महसूस कर पाते.

 * आंतरिक शांति: शायद बाहरी दुनिया की चकाचौंध से दूर, हम अपने अंदर झाँकने और आंतरिक शांति खोजने पर ज़्यादा ध्यान देते.

क्या खो जाता?

 * प्रकृति का सौंदर्य: पहाड़, नदियाँ, फूल, जानवर... हम किसी भी चीज़ की ख़ूबसूरती को अपनी आँखों से नहीं देख पाते. इंद्रधनुष के रंग, सूरज डूबने का नज़ारा, ये सब सिर्फ़ कल्पना में रह जाते.

 * भावनाओं की अभिव्यक्ति: आँखों से हम कई बार बिना कुछ कहे अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं - खुशी, उदासी, गुस्सा. यह सब मुश्किल हो जाता.

 * दुनिया से जुड़ाव: हम इस विशाल और सुंदर दुनिया से जो जुड़ाव महसूस करते हैं, वह शायद कम हो जाता.

यह सिर्फ़ एक कल्पना है, लेकिन यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आँखें हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण हैं. यह हमें सिखाता है कि हमें अपनी इंद्रियों का सम्मान करना चाहिए और उनके बिना जीवन कैसा हो सकता है, इसकी सराहना करनी चाहिए.

क्या आपने कभी ऐसी दुनिया के बारे में सोचा है? 

आपकी क्या राय है?

आज हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते हैं जहाँ आँखें होती ही नहीं! सोचिए, अगर हमारी ज़िंदगी से रोशनी और रंग हमेशा के लिए गायब हो जाएँ, तो कैसा होगा?

कैसी होगी दुनिया?

 * अंधेरे का राज: हर जगह सिर्फ़ अँधेरा होता. सुबह और शाम का कोई फ़र्क नहीं रहता. सूरज की किरणें, चाँद की चाँदनी और तारों की टिमटिमाहट का कोई मतलब नहीं होता.

 * पहचान का तरीक़ा: हम एक-दूसरे को देख नहीं पाते. लोग एक-दूसरे को छूकर, आवाज़ सुनकर या गंध से पहचानते. नाम और आवाज़ का महत्व बहुत बढ़ जाता.

 * कला और सौंदर्य: पेंटिंग, मूर्तिकला, फ़ोटोग्राफ़ी जैसी चीज़ें नहीं होतीं. सौंदर्य को महसूस करने का तरीक़ा ही बदल जाता. शायद हम संगीत, कविता या स्पर्श से चीज़ों की ख़ूबसूरती को समझते.

 * सीखने का तरीका: किताबें पढ़ने के बजाय, हमें सब कुछ सुनकर या छूकर सीखना पड़ता. स्कूलों में शायद ऑडियो क्लासेस और ब्रेल लिपि का बोलबाला होता.

 * आवागमन: सड़कों पर गाड़ियाँ नहीं होतीं, क्योंकि कोई रास्ता देख ही नहीं पाता. शायद लोग एक-दूसरे से जुड़ने के लिए आवाज़ों और स्पर्श का इस्तेमाल करते. सुरक्षा के लिए नए तरीक़े ढूँढे जाते.

क्या चीज़ें बेहतर होतीं?

 * भेदभाव कम होता: रंग-रूप के आधार पर होने वाला भेदभाव ख़त्म हो जाता. लोग एक-दूसरे को उनके अंदरूनी गुणों से पहचानते.

 * दूसरी इंद्रियों का विकास: हमारी सुनने, सूंघने, छूने और स्वाद चखने की शक्ति बहुत ज़्यादा बढ़ जाती. हम दुनिया को नए तरीक़ों से महसूस कर पाते.

 * आंतरिक शांति: शायद बाहरी दुनिया की चकाचौंध से दूर, हम अपने अंदर झाँकने और आंतरिक शांति खोजने पर ज़्यादा ध्यान देते.

क्या खो जाता?

 * प्रकृति का सौंदर्य: पहाड़, नदियाँ, फूल, जानवर... हम किसी भी चीज़ की ख़ूबसूरती को अपनी आँखों से नहीं देख पाते. इंद्रधनुष के रंग, सूरज डूबने का नज़ारा, ये सब सिर्फ़ कल्पना में रह जाते.

 * भावनाओं की अभिव्यक्ति: आँखों से हम कई बार बिना कुछ कहे अपनी भावनाएँ व्यक्त करते हैं - खुशी, उदासी, गुस्सा. यह सब मुश्किल हो जाता.

 * दुनिया से जुड़ाव: हम इस विशाल और सुंदर दुनिया से जो जुड़ाव महसूस करते हैं, वह शायद कम हो जाता.

यह सिर्फ़ एक कल्पना है, लेकिन यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आँखें हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण हैं. यह हमें सिखाता है कि हमें अपनी इंद्रियों का सम्मान करना चाहिए और उनके बिना जीवन कैसा हो सकता है, इसकी सराहना करनी चाहिए.

क्या आपने कभी ऐसी दुनिया के बारे में सोचा है? आपकी क्या राय है?


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